गौवंश का काल बन रहा सिंगल यूज प्लास्टिक, इंसानियत बचा सकती है बेजुबान मवेशियों की जान

जयपुर.

हिंदू धर्म के अनुसार गौ माता में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है लेकिन हमारी खराब आदतें गौ माता को मौत के मुंह में धकेल रही हैं। प्लास्टिक की थैलियों में भरकर फेंके जा रहे खाद्य पदार्थ को गोवंश थैलियों सहित खा जाता है। यही प्लास्टिक 70 फीसदी गौवंश की मौत का कारण बन रहा है। प्लास्टिक बेजुबान पशुओं की जान कैसे ले रहा है, यह खबर के साथ लगी तस्वीर को देखकर साफ पता चलता है।

आमजन की इस गलत आदत से इन बेजुबान पशुधन को कितना दर्द झेलना पड़ता है, इसका अंदाजा डॉक्टरों की टीम को होने वाली मशक्कत से लगाया जा सकता है। गायों के पेट में जमा प्लास्टिक के कारण वे चारा नहीं खा पाती हैं और उनकी मौत हो जाती है। ऑपरेशन के दौरान गाय के पेट से निकाले गए अपशिष्ट में कई ऐसी चीजें निकलती हैं, जिन्हें देखकर दिल पसीज जाता है। इन तस्वीरों को दिखाने के पीछे का मकसद शहरवासियों को यह बताना है कि अपनी सहूलियत के लिए प्रतिबंधित होने के बावजूद सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग करके उसे सड़क पर फेंक देना न सिर्फ पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है, बल्कि बेजुबान गौवंश की मौत का कारण भी बन रहा है। हिंगौनिया गौशाला में इसी कारण से प्रतिदिन औसतन 50 गोवंश की मौत हो जाती है। 24 नवंबर 2023 से 31 मार्च 2024 तक हिंगौनियां गौशाला में 158 गौवंश का पोस्टमार्टम हुआ, जिसमें से 112 गौवंश की मौत प्लास्टिक के कारण हुई। यानी 70 फीसदी मौत पेट में अत्यधिक पॉलीथिन की वजह से हुई। इसमें छह माह के बछड़े से लेकर गाय तक शामिल हैं, वहीं 30 फीसदी मौत विभिन्न हादसों की वजह से होती है।

सौ बीमार गायों का हर साल ऑपरेशन —
हिंगौनिया गौशाला के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. राधेश्याम मीना का कहना है कि हर साल सौ के करीब बीमार गायों का ऑपरेशन भी किया जाता है। इन गायों का जब ऑपरेशन किया जाता है, तो पेट में 25 से 52 किलो तक पॉलीथिन लेयर निकलती है। इसके अलावा सिक्के, लोहे की कीलें और हवाई चप्पल तक पेट से निकलती हैं। ऑपरेशन के बाद गौवंश को ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है और इनमें से करीब 90 फीसदी गौवंश फिर स्वस्थ हो जाता है। हरे कृष्ण मूवमेंट के प्रेमानंद का कहना है कि प्लास्टिक इंसान ही नहीं, पशुधन के लिए भी काफी खतरनाक है। बचे हुए खाने को प्लास्टिक में फेंकना कितना घातक हो सकता है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। शहरवासियों से अपील है कि जाने-अनजाने में प्लास्टिक की पॉलीथिन में बंद करके सड़कों पर कचरा ना फेंकें, क्योंकि बेजुबान मवेशी पॉलीथिन की थैलियों को सीधे ही खा जाते हैं और वे उनके पेट में जाकर गट्ठर के रूप में जमा हो जाती हैं। गौवंश के पोस्टमार्टम से पता चलता है कि पेट से निकला पॉलीथिन का ढेर ही उनकी मौत का कारण होता है। पॉलीथिन मवेशी के पेट के उस हिस्से में जमा होती है, जहां पाचन क्रिया में सहायक रूमिनो फ्लूड बनता है। पेट में पॉलीथिन की मात्रा बढ़ने पर फ्लूड कम बनने लगता है, जिससे पाचन क्षमता कम हो जाती है और खाना नहीं खाने से गोवंश की मौत हो जाती है।

पॉलीथिन का इस्तेमाल बंद करें —
बाजार में खरीददारी करते समय जूट या कपड़े का थैला लेकर निकलें और पॉलीथिन का इस्तेमाल बंद करें। नगर निगम शहरभर से जो गौवंश पकड़कर गौ पुनर्वास केंद्र तक लाता है, उनमें से 70 प्रतिशत पशुओं की हालत प्लास्टिक खाने से खराब हो चुकी होती है। गौवंश और अन्य बेजुबानों को असमय काल का ग्रास बनने से बचाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को बंद करना ही एकमात्र उपाय है।

India Edge News Desk

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